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एमएसएमई में 2 से 3 लाख जॉब्स, कामगारों को लेने कंपनियां बसें तक भेज रहीं, 35-40% में काम भी शुरू

लॉकडाउन फेज-4में मिली छूट के बाद तमिलनाडु के छोटे-बड़े उद्योगों ने फिर कामकाज शुरू कर दिया है। 1.2 करोड़ रोजगार देने वाले राज्य की 50 लाख एमएसएमई में ही फिलहाल करीब तीन लाख लोगों की जरूरत है।

कामगारों की सबसे ज्यादा जरूरत टेक्सटाइल और मैन्युफैक्चरिंग इंडस्ट्री को है। यहां फैक्ट्री मालिक घर लौट चुके मजदूरों से बात कर रहे हैं और उन्हें मनाकर वापस लाने के लिए बसें भी भेज रहे हैं। लॉकडाउन से पहले तमिलनाडु में करीब 12 लाख प्रवासी मजदूर काम कर रहे थे। इनमें से 4-5 लाख घर चले गए हैं। इनके अलावा 3 लाख दूसरी जगह चले गए हैं।

स्किल्ड और नॉन स्किल्ड लेबर की कमी

ऑल इंडिया मैन्युफैक्चरिंग एसोसिएशन के पूर्व अध्यक्ष के. ई. रघुनाथन कहते हैं, ‘35 से 40% यूनिट्स में काम शुरू हो चुका है। इसमें से 8 से 10% ऐसी हैं, जिनकी प्रोडक्शन यूनिट शुरू हो चुकी है। 45-60% यूनिट्स अभी खुलनी हैं।

अब लॉकडाउन खुलने के बाद कच्चे माल की कमी पूरी हाेनेे का इंतजार है। हालांकि, तब भी स्किल्ड और नॉन स्किल्ड लेबर की कमी रहेगी। मौजूदा हालात में यहां की फैक्ट्रियां 2 से 3 लाख कामगारों की तलाश में है। जब यहां की सभी यूनिट्स क्षमता से काम शुरू करेंगी तो कामगारों की जरूरत बढ़ेगी।’

फैक्ट्री मालिक 400 किमी दूर से मजदूर ला रहे

इंडस्ट्रीयल हब कोयम्बटूर में प्लांट चलाने वाले रमेश मुथुरामलिंगम 400 किमी दूर तिरुनेलवेली जिले से दो बसों में 25 मजदूर लाए हैं। वे कहते हैं-‘तंजावुर और मदुरई में कुछ मजदूर और मिले हैं, लेकिन इतनी दूर 20-25 लोगों के लिए बसें भेजना खर्चीला है।’ मुथुरामलिंगम की तरह कई फैक्ट्री मालिक भी मजदूरों को मना रहे हैं।

कोयम्बटूर की फैक्ट्रियों में 10% वर्कफोर्स

कोयम्बटूर में टेक्सटाइल, फाउंड्री और दूसरे सामान बनाने वाली करीब 14000 यूनिट्स हैं। फिलहाल इनमें महज 10% वर्कफोर्स काम कर रही है। मध्यम श्रेणी के उद्योगों में यह आंकड़ा 20%है। सभी यूनिट्स शुरू होने के लिए तैयार हैं लेकिन दिनरात चलाने के लिए मजदूरों की जरुरत है जो फिलहाल नहीं हैं।

कर्नाटक, तमिलनाडु में मजदूरों की कमी

सिपकोट मैन्युफैक्चरिंग एसोसिएशन के अध्यक्ष एस थयगराजन कहते हैं, हम फिलहाल कन्याकुमारी और दूसरी जगहों से मजदूर ला रहे हैं। हालांकि हमारे पास फिलहाल ज्यादा ऑर्डर नहीं हैं। मैन्युफैक्चर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष एएन सुजेश बताते हैं कि तमिलनाडु और कर्नाटक में मजदूर नहीं हैं और बिहार में इनके लिए काम। ये दोनों ही समस्याएं है।

मुफ्त संस्कृति हावी, श्रमिक बनना पसंद नहीं करते स्थानीय लोग

थयगराजन और उनके जैसे उद्योग मालिकों के लिए मजदूरों की कमी इसलिए भी चिंताजनक है क्योंकि तमिलनाडु के स्थानीय लोग ‘ब्लू कॉलर जॉब’ यानी फैक्ट्री में श्रमिक बनना पसंद नहीं करते। दूसरी बड़ी वजह राजनीतिक दलों की मुफ्त संस्कृति का हावी होना है, जिससे लोगों को पैसा, भोजन, साड़ी, लग्जरी आइटम आदि सामान घर बैठे ही मुफ्त में मिल जाते हैं।



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तमिलनाडु की मौजूदा स्थितियों में फैक्ट्रियां 2 से 3 लाख कामगारों की तलाश में है। जब यहां की सभी यूनिट्स क्षमता से काम शुरू करेंगी तो कामगारों की जरूरत बढ़ेगी। -फाइल


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