
दुनिया की हर जुबांकोरोना के डर से सहमी है। मीठी ईद का मुबारक मौका है, लेकिन एकमायूसी चढ़ बैठीहै। दिल भी मजबूर है और कदम भी। ऐसे माहौल में कुछ अच्छा सोचने और करने की ज़िद लिए हम एक साथ लाएं हैं चार शायर और दो थीम।
दैनिक भास्कर के लिए मीठी ईद पर'उम्मीद का चांद' और 'इस बार गले नहीं, दिल मिलाएं' थीम पर चार मशहूर शायरमुनव्वर राणा, शकील आजमी, मनोज मुंतशिर और मदन मोहन दानिशने अपनी कलम सेदिल के जज़्बात साझा किए हैं। हमने इन्हें वीडियो की शक्ल दी है ताकि दिमाग में एक तस्वीर बनें, शायद इन लफ्जों से थोड़ी उम्मीद बंध सके।
नीचे इन चार शायरों कोदेखें-सुनें और पढ़ें, ईद मुबारक ।
- मुनव्वर राणा का कलाम :"कच्ची मिट्टी की ईदगाह"
ईद गाहें कभी वीरान नहीं होती हैं
मस्जिदें भी कभी खाली नहीं होने पातीं
हम नहीं होंगे जहां पर तो फरिश्ते होंगे
बा जमाअत वो खड़े होंगे नमाजों के लिए
अपनी आंखो में लिए रहम के ढेरों आंसू
ये वो आंसू हैं कि जिनका नहीं होता मजहब
ये वो आंसू हैं जो मजहब की किताबों में मिलें
ये वो आंसू हैं जो सीनों में दुआ भरते हैं
ये वो आंसू हैं जो संतो में शिफा भरते हैं
ईद के दिन भी नहीं रोए कहीं भी बच्चे
न लिपिस्टिक की दुआएं न तो पावडर न क्रीम
नन्हे नन्हे से ये बच्चे भी दुआ मांगते हैं
अब करोना को मेरे मुल्क से गारत कर दे
नफरतें खत्म हो फिर से वही भारत कर दे
अबकी रमज़ान दुआओं के सहारे गुज़रा
नन्हें बच्चों के भी होंठो पे दुआ है अबकी
कोई बच्चा नहीं रोया किसी कपड़े के लिए
शौक की एक भी सीढ़ी से न उतरे बच्चे
उनके तो सिर्फ दुआओं के लिए हाथ उठे
मुल्क के वास्ते बस अम्न की दौलत मांगी
अपने अल्लाह से रो रो के मुहब्बत मांगी
नफरतें दूर हों "भारत"से हिफाज़त मांगी
- शकील आजमी की शायरी:
आसमान पर ये जो निकला आज ईद का चाँद है
कोरोना से हम निकलेंगे इस उम्मीद का चाँद है
आओ मोहब्बतों के नए गुल खिलाएं हम
इस ईद पर गले न मिलें दिल मिलाएं हम
- मनोज मुंतशिर की नज़्म
नयी उम्मीद से हम ईद की ख़ुशियाँ मनाएँगे
गले हर साल मिलते हैं हम अब के दिल मिलाएँगे
हमें ऐ चाँद तू भी आसमाँ से देखते रहना
बुझे हैं आज तो क्या, कल दोबारा जगमगाएँगे..
गले हर साल मिलते हैं हम अब के दिल मिलाएँगे..!!!
- मदन मोहन दानिश के जज़्बात
उम्मीदों का चाँद है ये ,रहमत का इशारा भी
भाग जगे इस बार तुम्हारा और हमारा भी
बेशक गले न लग पाएं लेकिन दिल की धुन पर
एक साथ गाए सारंगी और इकतारा भी
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