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घर से काम करने को लेकर कोई प्रोटोकॉल बने, वरना मुश्किल हो जाएगा वर्क फ्रॉम होम

कोविड-19 ने ‘ऑफिस’ या कार्यक्षेत्र के हमारे विचार और अवधारणाओं को बदल दिया है। ट्विटर ने हाल ही में घोषणा की है कि वह सभी कर्मचारियों को स्थायी रूप से घर से काम करने की इजाजत देगा।

फेसबुक भी उसी दिशा में आगे बढ़ रहा है। टीसीएस ने कहा है कि 2025 से कंपनी के 75% कर्मचारी घर से ही काम करेंगे। निजी और सार्वजनिक क्षेत्र दोनों ही ‘वर्क फ्रॉम होम’ को भविष्य के ऑफिस की तरह देख रहे हैं।

आज के दफ्तरों के स्वरूप के पीछे जाएंं, तो पाएंगे कि आरंभ में सरकार, व्यापार हो या धार्मिक गतिविधियों को बढ़ाने के लिए बनाए बड़े-बड़े संगठन में ऑफिस की प्रथा शुरू हुई, क्योंकि इनके साथ बहुत सारा लिखित रिकॉर्ड होता था। ईस्ट इंडिया कंपनी के ऑफिस को हम इसकी शुरुआत के रूप में देखते हैं।

सत्रहवीं शताब्दी से नए तरह के व्यवसाय जैसे वित्त, कानून, सिविल सर्विसेस और इससे मिलते-जुलते कामों का चलन बढ़ा, तो इनके लिए डेस्क इनकी अलग दुनिया हो गई। समय के साथ ये ऑफिस और शहर हमारी दुनिया हो गए।

ऑफिस जाने वाले का रुटीन सिर्फ घर से ऑफिस, डेस्क पर दिन भर काम, मीटिंग्स, लंच, कॉफी ब्रेक्स में गुजरता और जो बचा-खुचा समय होता, वही घर पर गुजर पाता। हम अपना सबसे ज्यादा और कीमती वक्त ऑफिस में बिताने के आदी हो गए हैं।

2015 में मैं फेसबुक के हेडक्वार्टर कैलिफोर्निया गई थी। वहां जाकर मुझे लगा जैसे किसी मॉल में आ गई हूं। ऐसे शानदार वर्कप्लेस के साथ-साथ हमने ऐसी कंपनियां भी देखी हैं, जो अपने सर्वसुविधायुक्त ऑफिस स्पेस को किराए पर भी देती हैं और बारी-बारी से यहां काम होता है।

हमारी कामकाजी ज़िंदगी में ऑफिस स्पेस हमारा मुख्य स्थान और हमारा फोकस भी रहा है। लेकिन इस महामारी ने कार्यक्षेत्र को लेकर हमारे कई विचार बदल दिए हैं। इंटरनेट की बेहतर कनेक्टिविटी से बहुत सारे लोग घर से काम कर पा रहे हैं। हम उस भविष्य को देख रहे हैं, जहां हमारा घर ही दफ्तर हो जाएगा।
वर्क फ्रॉम होम के कई और पहलू भी सामने निकलकर आए हैं। इन दिनों किसी भी व्यक्ति से पूछ लीजिए, वह यही कहेगा कि ऑफिस की तुलना में घर पर काम के घंटे बढ़ गए हैं। चूंकि वे घर पर हैं, ऐसे में उनसे उम्मीद की जाती है कि काम के लिए वे हर समय मौजूद रहेंगे।

अब तो वीकेंड भी उस तरह से फ्री नहीं रहे। चूंकि वर्क फ्रॉम होम को हम भविष्य के तौर पर देख रहे हैं, ऐसे में जरूरत है कि संगठन घर से काम करने को लेकर कोई प्रोटोकॉल या काम करने की कोई आदर्श गाइडलाइन तय करें।
वर्क फ्रॉम होम के दुष्प्रभावों के बारे में भी बात करना जरूरी है। बड़ी मुश्किल से महिलाएं वर्कफोर्स में अपनी स्थिति बेहतर कर रही थीं, लेकिन इस नई व्यवस्था से हो सकता है उन्हें निराशा हाथ लगे। अब चूंकि ऑफिस-घर के बीच कोई सीमा नहीं रहेगी।

खासतौर से उन पुरुषवादी परिवारों में जहां पति-पत्नी दोनों घर से काम कर रहे हैं, स्वाभाविक तौर पर घर के कामों और बच्चों की जिम्मेदारी महिला पर ही आएगी। जब दबाव बढ़ेगा तो मुमकिन है कि पुरुष तो काम एकाग्रता के साथ कर पाए, लेकिन महिलाओं को समझौता करना पड़ेगा। ऐसे में महिलाओं की नौकरी पर भी संकट आ सकता है।
ऑफिस में लोगों से चर्चा और आमने-सामने मुलाकात होती है। कोई भी वीडियो चैट लोगों से रूबरू होकर बात करने वाली ऊर्जा का मुकाबला नहीं कर सकती। ऑफिस स्पेस का ऐसा आकर्षण है, जिससे आसानी से नहीं निकला जा सकता। अब आगे जैसे जैसे हालात होंगे, ऑफिसेस-ऑर्गेनाइजेशन काम के मॉडल को लेकर अपनी रणनीति बनाएंगे।

तब शायद अपनी जिंदगी और काम के बीच हम एक वर्क-लाइफ बैलेंस की उम्मीद कर पाएं-जीवन में भी और स्पेस में भी।



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साधना शंकर, भारतीय राजस्व सेवा की अधिकारी है।


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